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Sunday, June 26, 2011

ये किस्से

ये प्यार मोहब्बत, ये इश्क़ों के किस्से,
ये झूठी कहानी, वफ़ाओं के क़िस्से,

बिना दिल को समझे, दिल की ये बातें,
बिना गम को जाने, गमख्वारी के किस्से,

खुद ही की बेवफ़ाई, और तोहमत किसी पे,
ये फिरकापरस्ती के बोझिल से किस्से,

ख़यालों की दुनिया मे जो तुमने बसाए,
उन वीरान मकानो, के टूटे ये हिस्से,

मेरे आँसू-ओं को जो कहते हो झूठा,
तो क्यूँ बने जाते हो, इसी दरिया के हिस्से

खुले दिल से मानो, के तुम भी ग़लत हो,
बिछड़े हुए दिल, मिलेंगे तो फिरसे,

थामा है हाथ मेरा, तो कह दो सभी को
क्यूँ छिपाते हो सच को, दुनिया के डर से,

करो बदज़बानी, मगर सोच लेना,
कभी तुम भी होगे, “बुढ़ापे” के हिस्से

बड़ी मुश्किलों से, पढ़ाया है तुमको,
अब बनो तुम भी उनकी, खुशियों के किस्से

सताओ उसे, चाहे घर से निकालो,
तेरे बच्चे भी है, उसी मा के हिस्से

दुनिया से छुपा लोगे, अपनी ये कमियाँ,
क्या खुद ही से तुम, निकल पाओगे बच के

जो तुझको मिला है, बड़ा कीमती है,
ना खोना इसे झूठी, मर्दानगी के डर से,

Wednesday, June 22, 2011

“काँटे” गुलाब कर दो

यूँ मुस्करा के देखो, “काँटे” गुलाब कर दो
लबों से प्याले छू के, पानी शराब कर दो,

पन्ने कई है खाली, हैं सफे कई अधूरे,
चले आओ ज़िंदगी मे, पूरी किताब कर दो,

Sunday, June 12, 2011

तहज़ीब भी सिखाई होती

हसरत थी इतनी तो थोड़ी हिम्मत भी दिखाई होती
आ ही गये थे बाज़ार मे तो बोली भी लगाई होती,

क्या क्या ना कहता रहा,  नज़रें झुका के वो
सच्चाई थी बातों मे तो नज़रें भी मिलाई होती,

गाँधी-नेहरू की बातें, ठीक है बेटे को सुनाना,
बाप-दादा की कहानी भी कभी उसको सुनाई होती,

मेरी रज़ा को बूझती है खुद की रज़ा से पहले
क्यूँ इतना ख़याल करती अगर बेटियाँ पराई होती,

वज़ूद को यूँ कोसती रही, रात भर शमा
ना मे जलती, ना हम मिलते,  ना जुदाई होती

इतना भी खुला ना छोड़ो, की अफ़सोस हो “बेक़रार”
काश बच्चों को थोड़ी तहज़ीब भी सिखाई होती,

Thursday, June 9, 2011

बिखरना लाजिमी था

बिन धागे के फूलों का बिखरना लाजिमी था,
राहों मे गिरे तो फिर कुचलना लाजिमी था

मुश्किल मे मदद का मुझे हाथ ना मिला,
खुद आप ही मेरा, संभलना लाजिमी था

हर वक़्त जो मुस्कान को होठों पे रखता है
उस शख्स का तन्हाई मे सिसकना लाज़िमी था,

हर रोज दिखाए जाते थे ढेर दौलत के,
चिकनी थी मिट्टी, वहाँ फिसलना लाजिमी था,

मासूम है औकात  का गुमान नही है,
चाँद के लिए बच्चे का मचलना लाजिमी था,

Friday, June 3, 2011

सुन रहे हैं शाहरुख, सलमान और दिग्विजय जी

शाहरूख, सलमान या फिर दिग्विजय सिंग जी.....सभी का कहना है की बाबा रामदेव को सिर्फ़ अपने काम तक ही सीमित रहना चाहिए इससे ज़्यादा किसी और काम मे हाथ नही डालना चाहिए....मैने जब इन महाशयों के ये बयान टीवी पर देखे तो मन मे सवाल उठा की भाई.....एक बाबा जो योग सिखाता है उसने अगर काले धन को देश मे वापस लाने की माँग कर दी तो इसमे ग़लत क्या है? इस देश मे किसी विपक्षी पार्टी ने काले धन को वापसलाने की माँग को इतनी गंभीरता से कभी नही उठाया की सरकार को इस बारे मे सच मे कुछ उचित कार्यवाही करनी पड़े ...बस भाषण मे इसका इस्तेमाल हुआ है.....और जो लोग इंटरनेट का नियमित इस्तेमाल करते हैं उन्हे ज़रूर इस तरह के मैल मिले होंगे की भारत का कितना पैसा बाहर स्विस बॅंक मे जमा है और इस पैसे के वापस आ जाने से कितने काम किए जा सकते हैं, .......आज करोड़ों लोग बाबा के अनुयायी हैं योग की वजह से........और देश मे सभी राजनैतिक पार्टीया काले धन के विषय मे सिवाय बयानबाज़ी के कुछ और करने के मूड मे नही दिख रही......लोग भूख से मार रहे हैं और कुछ लोगों ने इतना पैसा बना लिया है की देश मे रखने की जगह नही.....रखते भी हैं तो स्विस बॅंक मे.....ऐसे हालत मे अगर सक्षम बाबा रामदेव ने इसे वापस लाने का बीड़ा उठाया तो ग़लत क्या है.......मे राजनैतिक जानकारी नही रखता मगर इतना कह सकता हूँ की ...किताबों मे पढ़ा था सत्याग्रह लेकिन अन्ना हज़ारे से पहले किसी राजनैतिक पार्टी के किसी भी नुमैन्दे ने कब सत्याग्रह किया मुझे याद नही......आजकल के नेता कर भी नही सकते..एसी की आदत है...नरम गद्दे चाहिए .....भूखे कैसे रहेंगे?
खैर मेरे कहने का मतलब सिर्फ़ इतना ही है की जब बात देश हित की हो तो चाहे आप कोई भी काम करते हों एक हो जाना चाहिए....और काले धन का मामला तो ऐसा है की हमाम मे सब नंगे तो जाहिर है कोई किसी पर उंगली नही उठाएगा लेकिन किसी को तो सामने आना ही होगा....देश हित सभी का काम है.....इसका या उसका नही..सबका..आपका भी,,,,,,,,, सुन रहे हैं शाहरुख, सलमान और दिग्विजय जी

Thursday, June 2, 2011

रिश्ते

ममता मे पलते हैं, रिश्ते हिमायत के,
औलाद से हैं बाप के रिश्ते हिफ़ाज़त के

तोड़ने से पहले महज इतना ख़याल हो
मुश्किल से बनते हैं रिश्ते मुहब्बत के

भरोसे की कच्ची डोर से बँधे हुए हैं ये
सहेज कर रखना ये रिश्ते नफ़ासत के,

खत मे तुझे “मेरी जान” हर बार लिख  दिया
काग़ज़ पे ही लिखना है, रिश्ते लिखावट के,

मिलने आया है कोई,  कहीं कुछ माँग ही ना ले
मूफलिसो से माने जाते हैं  रिश्ते मुसीबत के

मिलना ही होगा, भले मर्ज़ी नही अपनी
जबरन निभाए जाते हैं,  रिश्ते बनावट के,

रुतबे वालों से हो चाहे, नाम का रिश्ता
खुलकर जताए जाते हैं, रिश्ते दिखावट के,

अभी हैं और भी रिश्ते, रिश्ते बग़ावत के,
कहीं रिश्ते खिलाफत के, कभी रिश्ते सजावट के