मेरे महबूब भी मुझसे कुछ इस हाल से मिले,
मैदान-ए-जंग मे शम्सीरें जैसे ढाल से मिले,
मेरी बुलंदी ही थी शायद दोस्ती की अकेली वज़ह,
वक़्त बदला तो हर नज़र मे कई सवाल से मिले,
छलक गईं उनकी भी आँखें मेरा घर गिरा कर,
जो भीगे से कुछ पत्थर मेरी दीवाल से मिले,
ना मजनू से मेरा जोड़, ना रांझा से मुक़ाबला,
नही ऐसी कोई मिसाल जो मेरी मिसाल से मिले,
आहों मे भी क़हक़हे, अब अज़ीब नही लगते,
कई दीवाने इस बzम मे, हम ख़याल से मिले,
मिलने मिलाने मे भी रहा हैसियत का असर "बेक़रार"
कुछ मलाल से मिले तो कुछ कमाल से मिले,
मैदान-ए-जंग मे शम्सीरें जैसे ढाल से मिले,
मेरी बुलंदी ही थी शायद दोस्ती की अकेली वज़ह,
वक़्त बदला तो हर नज़र मे कई सवाल से मिले,
छलक गईं उनकी भी आँखें मेरा घर गिरा कर,
जो भीगे से कुछ पत्थर मेरी दीवाल से मिले,
ना मजनू से मेरा जोड़, ना रांझा से मुक़ाबला,
नही ऐसी कोई मिसाल जो मेरी मिसाल से मिले,
आहों मे भी क़हक़हे, अब अज़ीब नही लगते,
कई दीवाने इस बzम मे, हम ख़याल से मिले,
मिलने मिलाने मे भी रहा हैसियत का असर "बेक़रार"
कुछ मलाल से मिले तो कुछ कमाल से मिले,