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Wednesday, August 10, 2011

थाम लिया होता


जो गिरने से पहले ही मुझे थाम लिया होता.
मैने भी कहाँ अब तक तेरा नाम लिया होता,


मेरे गिरने की संभलने की मिसालें नही बनती,
जो तूने भी मोहब्बत से अगर काम लिया होता,

Monday, August 8, 2011

गरचे जिगर ना हो


मफलिसो, यतीमों पे जिसकी नज़र ना हो
वो अधूरा दौलतमंद है जिसमे सबर ना हो,


दौलत को आता देख कर ईमानदारी ने कहा
शायद अब इस दर पे कभी मेरी कदर ना हो,


वाक़िफ़-ए-हालत हूँ, तभी तो चोट लगती है
साजिशें ऐसी हो तेरी के मुझको खबर ना हो,


रोज बूढ़ी आँखो से रास्ते को तकता है
रोज़ी की खातिर कोई बेटा दर-बदर ना हो,


रवाँ होसले रहे तो कुछ कर जाओगे "बेक़रार"
फौलादी जिस्म भी बेकार है गरचे जिगर ना हो,

Tuesday, August 2, 2011

शाम ढलते ढलते


कल फिर सहर मे होगी, मुलाकात चलते चलते 
सूरज कह गया था ये, शाम ढलते ढलते


पलकों मे समेटे रखा, मरने नही दिया,
ख्वाब सभी सच हो गये आँखों मे पलते पलते,


तासीर थी जुदा मेरी, कुछ तेरा असर हुआ,
पीलापन आ ही जाता है उबटन को मलते मलते


बाति खुद जली, खोया तेल का वज़ूद
रात बहूत मश-हूर हुआ, चिराग जलते जलते,


है "बेक़रार" उदास, शाखों को देख-कर 
वक़्त तो लगता ही है फलों को फलते फलते