कल फिर सहर मे होगी, मुलाकात चलते चलते
सूरज कह गया था ये, शाम ढलते ढलते
पलकों मे समेटे रखा, मरने नही दिया,
ख्वाब सभी सच हो गये आँखों मे पलते पलते,
तासीर थी जुदा मेरी, कुछ तेरा असर हुआ,
पीलापन आ ही जाता है उबटन को मलते मलते
बाति खुद जली, खोया तेल का वज़ूद
रात बहूत मश-हूर हुआ, चिराग जलते जलते,
है "बेक़रार" उदास, शाखों को देख-कर
वक़्त तो लगता ही है फलों को फलते फलते