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Tuesday, March 6, 2012

हुनर कैसे कैसे


फनकार करते हैं अब बसर जैसे तैसे
फ़ना हो चुके हैं हुनर कैसे कैसे

मयकशी, रंजोगम का जवाब बन गई,
दवा बन चुके हैं, ज़हर कैसे कैसे,

जब से मेरे गाँव मे आया है वो शहरी
देखता हूँ सब मे असर कैसे कैसे

फलक का चाँद थे जो, अब तारों मे नही गिनती
ढाती है जिंदगी भी कहर कैसे कैसे

सूखी पलकों को देख, मुझे पत्थर कहने वाले
मैं करता हूँ आसुओं को ज़बर कैसे कैसे

दाम पूछ के ही माँगते हैं खिलोना मुझसे,
मेरे बच्चे भी करते हैं सबर कैसे कैसे