बना, बिगड़ा, गिरा, संभला, उठा, बैठा, बहा, बहका
कभी रोया, कभी चहका, कभी खोया कभी महका,
कभी तन्हा कभी मेला, सब तक़दीर का खेला,
सूना समझा, हंसा बोला, कभी माशा कभी तोला,
कभी राशन कभी कपड़े, पानी के लिए झगड़े,
केरोसिन कभी शक्कर, कभी चावल, कभी कंकर,
उधारी वो बानिए की, निकल जाना है फिर छुपकर,
कहाँ खोया मेरा बचपन, कहाँ जवानी गई छूकर,
सर्दी मे कभी ठिठूरा, कभी गर्मी ने सहमाया,
सपनो ही मे था वो गरम सूट, एसी, कूलर सब ख्वाब रहा,
कभी बच्चों के कपड़ों मे, तो कभी बाबूजी के कंबल मे,
मा के तन से लिपट गया, वो गरम सूट बस ख्वाब रहा,
कभी शादी कभी बच्चे, कभी झूठे कभी सच्चे,
कन्ही मा-बाप मे उलझा, कहीं बीवी ने भर्माया,
कभी दो घूँट मे बहका, कभी यारों ने बहकाया,
कभी दुख भी लगे सुख से, कभी सुख मे भी दुख पाया.
कभी बीवी की बातों मे मा-बाप से उलझा,
कभी मा-बाप की सुन ली बीवी को धमकाया,
कभी बच्चों के झगड़ों मे, कभी स्कूल को लेकर
जो कुछ खुद ना कर पाया, बच्चों से करवाया.
कुछ भी ऐसा कर ना सका, की लोग मुझे फिर याद करे,
मेरे बारे मे भी सोचे, मुझपे कोई बात करे.
मे हूँ एक आम आदमी, बस इतना ही कर पाया हूँ,
सुबह निकला , शाम आया, स्कूलों की फीस भरी,
डांटा डपटा मारा पीटा, फिर आहों की टीस भरी,
दवा-दारू, किराया-पानी,
खाली हाथ चाय पानी,……………………….
ज़िंदगी का लेखा-जोखा,.. एकदम नए अंदाज़ में..!!
ReplyDeleteज़िंदगी और कुछ नहीं, सबकी एक ही कहानी है।
रचना बहुत पसंद आई।