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Monday, December 26, 2011

म्याने बस

दिखावे ही को है म्याने बस, तलवार नही है,
कुछ एक है भी तो उनमे भी धार नही है,

चाक-चौबंद जो अपने हथियार रखते हैं,
वो बुजदिल जंग लड़ने को तैयार नही है,

अरसे बाद पिंजरा अगर खुला तो क्या खुला,
परिंदा ही अब उड़ने का तलबगार नही है,

फ़िकराकशी का मौजू और हूँ लुत्फ़ का सामान,
हस्ती मेरी नाकाम सही बेकार नही है,

तुझे पाने की तमन्ना गर गुनाह है कोई,
तो कहो महफ़िल मे कौन गुनहगार नही है,

उसी के दर पे मिलेगा, जाओ तलाश लो,
कई दिनों से महफ़िल मे "बेकरार" नही है

3 comments:

  1. अरसे बाद पिंजरा अगर खुला तो क्या खुला,
    परिंदा ही अब उड़ने का तलबगार नही है,

    कितनी बड़ी बात कह दी आपने ! बहुत बढि़या !

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  2. बन गए हैं तेरे अनुसरक अब यार मेरे ,
    कुछ कहा अब छूटे ,ये हमें स्वीकार नहीं है ॥।

    अच्छा लगा कि आज आपके ब्लॉग से मुलाकात हो गई । भविष्य के लिए आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं

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