मफलिसो, यतीमों पे जिसकी नज़र ना हो
वो अधूरा दौलतमंद है जिसमे सबर ना हो,
दौलत को आता देख कर ईमानदारी ने कहा
शायद अब इस दर पे कभी मेरी कदर ना हो,
वाक़िफ़-ए-हालत हूँ, तभी तो चोट लगती है
साजिशें ऐसी हो तेरी के मुझको खबर ना हो,
रोज बूढ़ी आँखो से रास्ते को तकता है
रोज़ी की खातिर कोई बेटा दर-बदर ना हो,
रवाँ होसले रहे तो कुछ कर जाओगे "बेक़रार"
फौलादी जिस्म भी बेकार है गरचे जिगर ना हो,
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