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Tuesday, December 28, 2010

उलझने

अल्फाज़ों मे बयान खूबसूरती को किया जाए कैसे,
हो बेमिसाल हुस्न तो कलम रुक भी जाए कैसे


ये कम्बख़त है खुद की हदों से बेख़बर
दिल-ए-नादान को इसकी सरहदें बतलाएँ कैसे,


है आसमान के चाँद पर सभी का इख्तियार,
पर तुम चाँद हो जमी का इसे समझाए कैसे


हुआ गुम मेरा वज़ूद, तलबगारों की भीड़ मे
मुझ तक तेरी निगाह भी अब आए कैसे,


तेरे बगैर हासिल हर इक शै है बेमाज़ा
समंदर की भला प्यास कहो बुझाए कैसे,



करें इश्क़ पहले या फिर करें रोटियो का जुगाड़,
इन बेमुररव्ात उलझानो को, सुलझाएँ कैसे

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