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Tuesday, December 28, 2010

ज़िंदगी

फाके मे दिन गुज़ारे, रईसी भी देखी,
महफिलें जमाई, तन्हाईयां भी देखी,


कुछ इस कदर बढ़ी वाकिफियत हमारी,
जीने की हर अदा अब लगती है देखी देखी,


देख कर किसी को अनदेखा सा करना,
वक़्त के साथ साथ नज़र बदलते देखी,


जी ना सकूँगा तुम बिन हज़ारों दफ़ा कहा था,
जाने के बाद उनके जीने की चाह देखी,


तेरे बिना हंस पाऊँगा, सोचा तक नही था,
ज़िल्लत से हंस के मैने, सोचें बदलते देखी,



सच पे हमेशा रहना, सच्चे का साथ देना,
बारी जो खुद की आई, सीखें बदलते देखी,



कुछ इस कदर बढ़ी वाकिफियत हमारी,
जीने की हर अदा अब लगती है देखी देखी

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