माना की दीप की लौ मे चाँद सा प्रकाश नही होता
दीवाली की रात पर आज भी है सिर्फ़ दीपों का अधिकार,
अमावस्या की रात मे चाँदनी का अहसास नही होता,
माना की तुम मोहताज हो बाति के, तेल के, पर
दस्तूर है बिना मिले-जुले जीवन का विकास नही होता,
क्या चिंतित हो जीवन की लघु अवधि को सोच के,
उपलब्धियों के बिना लंबा जीवन भी ख़ास नही होता,
पतंगों को आज भी तुम्हारी लौ मे जलते देखा है,
क्या तुम्हे उनकी शहादत का एहसास नही होता,
जब प्रज्वल्लित हो ही गये हो, तो पूरे जोश से दो प्रकाश,
जिंदगी खुल के जीने से जीवन का नाश नही होता
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