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Monday, February 14, 2011

बाज़ार नही मिलते


"सच्चे सौदे" की लिए अब यहाँ, बाज़ार नही मिलते,
सच्चाई और ईमानदारी के, खरीदार नही मिलते,


मेरे अंजाम से बे-खबर, कुछ लोग कह गये,
अब "रांझा, मजनू" से इश्क़ के, तलबगार नही मिलते,


"नव-रत्नो" का सा इल्म रखते है अब भी लोग पर
उन्हे अकबर जैसे शहन्शाओं के, दरबार नही मिलते,


मे रोया शिद्दत से और छलका आसमान भी,
लोग कहते हैं अब "बैजू बावरा" से, फनकार नही मिलते


मसरूफ़ यूँ रहते हैं वो पराए शगल मे,
घर लौटते हैं तो खुद के ही, घर-बार नही मिलते,


तिरछी निगाह का असर, घायल हुए कई,
हसिनाओं के पास अब ये, हथियार नही मिलते


उस रास्ते को सही समझने का गुमान ना करना दोस्त
जिस रह पे सिर्फ़ गुल मिलें, और ख्वार नही मिलते


तसल्ली सी दे गये, दुश्मनो के ये बयान
तुम जैसे रक़ीब जिंदगी मे हर-बार नही मिलते


सारे आम नुमाइश गुनाहों की, साक़ि-शराब की
अब "बेकरार" से सीधे सादे, गुनहगार नही मिलते

3 comments:

  1. "नव-रत्नो" का सा इल्म रखते है अब भी लोग पर
    उन्हे अकबर जैसे शहन्शाओं के, दरबार नही मिलते,

    वाह ! क्या बात लिखी आपने ।
    बहुत सुन्दर !

    .

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  2. मेरे ब्लॉग लिखने के प्रयास को आपकी पहली प्रतिक्रिया मिली, हृदय के हर कोने से आभार शुक्रिया..

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  3. Bahut bahut gazab hai bhai ... :) samay nahi mil paata apni pratikriya dene ka.. maafi chahta hun.. aap likhte rahe .. behtareen rachna..

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